प्रकरण-85 और फिर भावना ने प्रसन्न द्वारा बताया काम उसी दिन कर दिया। डॉ. मंगल ने केतकी को दवाइयों की जो पुड़िया दी थीं, उनमें से दो उसने प्रसन्न को लाकर दीं। प्रसन्न के मन में एक डर था। उसको विश्वास तो नहीं था, पर शंका थी। उसने यह जानने की कोशिश की कि यह दवा वास्तव में है क्या? और दो दिनों बाद उसे जो निष्कर्ष मिला उसे सुन कर तो उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गयी। यह बात किसी को कैसे बतायी जाये, उसे समझ में नहीं आ रहा था। बहुत सोच-विचार करने के बाद उसने तीन-चार