कहते हुए जमनादास की आँखों में उम्मीद की हल्की सी किरण दिखाई दी। बगल में ही खड़े अमर की तरफ मुड़ते हुए बोले, "बेटा ! मैं तुम्हारी माँ का गुनहगार तो हूँ ही, तुम्हारे मासूम बचपन का हत्यारा भी मैं ही हूँ। सेठ गोपालदास अग्रवाल का चश्मोचिराग, जिसके आगे पीछे नौकरों की फौज होनी चाहिए थी, जिसके सिर पर माँ और पिता के सम्मिलित स्नेह की बारिश होनी चाहिए थी, अग्रवाल इंडस्ट्रीज के हजारों कर्मचारियों की दिल से निकली दुआएं जिसका जीवन सुखद करनेवाली थी उसका बचपन यहाँ गरीबी और अभावों में बीता इस सबका कारण मैं ही हूँ। ...काश,