एकाकी

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एकाकी कौशल्या जी को गुजरे अभी दस दिन भी न हुए थे कि उनके तीनों बच्चों मे उनकी चीजों को लेकर झगड़ा आरंभ हो गया। जैसा कि अधिकतर घरों मे होता है कि घर के स्वामी या स्वामिनी का महाप्रयाण हुआ नहीं कि संपत्ति का झगडा शुरू। सो यहाँ भी कुछ नया न हो रहा था। बड़ी बहू सबकी चाय लेकर आई और तमकते हुए बोली ," सारा जीवन मैंने सेवा की है और आज जब कुछ मिलने की बारी आई तो मंगते पहले इकट्ठा हो गए, पिता जी मै कुछ नहीं जानती आप मुझे अम्मा के मोटे वाले कंगन