भंगिन

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भंगिन शरोवन की एक ज्वलंत कहानी अचानक से आकाश में जैसे भटकी हुई बदलियों ने चमकते हुये चन्द्रमा के मुख पर अपनी चादर डाल दी तो पल भर में ही सारा आलम फैली हुई स्याही के रंग में नहा गया। इस प्रकार कि चारों तरफ फैला हुआ रात्रि का ये मनहूस मटमैला अंधियारा जैसे भांय-भांय सा करने लगा। कुशभद्रा शांत थी। उसके जल में फैली हुई चांदनी की कोमल किरणें अपना दम तोड़ चुकी थीं। और बालू के तीर पर कफन के समान सिसक-सिसक कर जलती हुई अंतिम चिता की राख़ भी अब ठंडी हो चुकी थी़। अपने प्रिय को