अलमारी की दराज़ में अब भी उसकी यादें बसती है। उसकी शर्ट का बटन, पेन का ढक्कन और वो 'कागज़ के कुछ टुकड़े....।' जो पुड़की बनाकर फेंके थे कभी उसने। अलमारी की साफ़ सफ़ाई में आज हाथ ज़रा दराज़ के भीतर चला गया...। मानो बटन ने खींच लिया हो जैसे...। इक पल के लिए दिल धड़कना भूल गया। सांसे थम सी गई। बरसों बाद लगा उसका स्पर्श पा लिया हो जैसे...। मन जो तड़पना, तड़पाना भूल गया था...। वो आज फ़िर से तड़प उठा...। बैचेनी की हुक उठने लगी...जिस्म जैसे बिन बारिश के भीगने लगा...। कुुछ देर तक अपनी हथेली