एक रूह की आत्मकथा - 15

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लीला की बातें मेरे मन पर आघात कर रही थीं।मुझे खुद पर क्रोध आ रहा था कि क्यों समर के प्रेम में पड़ गई हूं?क्या मैंने कभी ऐसा चाहा था कि किसी स्त्री के दुःख का कारण बनूं?किसी स्त्री से उसका हक छीनू? दूसरी स्त्री कहलाऊँ?किसी स्त्री को ये हक दूं कि वह मुझ पर अपने पति को छीनने का आरोप लगाए?नहीं ..कभी नहीं..पर परिस्थितियों ने मुझे ऐसे भंवर में डाल दिया है जो मुझे निरन्तर नीचे की ओर ले जा रही है।पति के रहते और उसके न रहने के बाद भी मुझ पर कई आरोप लगाए गए पर उससे