एक रूह की आत्मकथा - 12

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मैं नहीं जानती थी कि देह की भूख इतनी प्रबल होती है।यह पेट की भूख से भी ज्यादा खतरनाक होती है।पेट का भूखा भक्ष्य-अभक्ष्य का ख्याल नहीं रख पाता।कई दिन का भूखा खाने में अपनी रूचि और स्वाद को भी किनारे रख देता है।कच्चा-पक्का,गन्दा -साफ,जात- कुजात,धर्म -सम्प्रदाय कुछ भी उसे नहीं दिखता।ये सब पेट -भरे का शग़ल है।भूखे को पेट भरने को कुछ चाहिए।जहाँ और जैसे मिले या जिससे मिले।ये छोटा- सा पेट इंसान पर इतना हावी हो जाता है कि एक समय के बाद इंसान इंसान से जानवर या राक्षस हो जाता है। इसी पेट के लिए लोग जीवन