मैरीड या अनमैरिड (अंतिम भाग)

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अरसे बाद मैं आनंद के घर के दरवाज़े पर खड़ी थीं। मैं पहले भी कई बार आनंद के घर आ चूँकि थीं। पर आज लग रहा था जैसे पहली बार किसी अजनबी के घर आई हूँ औऱ ताला खोलते समय मेरे हाथ कुछ इस तरह से कांप रहें थे जैसे मैं कोई चौर हुँ। मैंने दरवाजा खोला तो मेरे आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रहीं । आनंद ने अपने घर का पूरा इंटीरियर बदल दिया था। उसके घर का कोना - कोना इस तरह से सजा हुआ था जैसा मैं उसे बताया करती थीं। मैं अक्सर आनंद से अपनी चाहतों