ज़िंदगी भी किसी किराये के मकान की तरह लगतीं हैं । कभी जिंदगी में ढ़ेर सारी खुशियाँ दबे पाँव दस्तक दे देतीं हैं तो कभी बिन बुलाए मेहमान की तरह गम आ जाता हैं । जिंदगी के इस मकान में रहने वाले ये किराएदार ख़ुशी और गम क़भी स्थायी नहीं रहतें । आनंद की आँखों के द्वार से होकर मैं उसके मन के उस कमर्रे तक पहुँच जाना चाहतीं थीं जहाँ उसने अपने गम दफ़न किए हुए थें । आनंद की आँखे अक्सर उसके मन की बात बयाँ कर देतीं थीं । जिन्हें पढ़कर मैं उसके दर्द बाँट लिया करती