अरुंधती ही मृणाल की आरुणि है। जब मृणाल ने अरुंधती को उलझा हुआ देखा, तो उसे बांहों में भर कर पलंग पर बिठा दिया और खुद उसके पैरों के पास बैठ गया। बोला, “तुम मेरे लिए सदा से एक पहेली रही। जैसे कि तुम अरुंधती तो हो, लेकिन कुछ और भी हो। फिर उस सुबह जब तुम्हें देखा, तो ऐसा लगा कि जैसे मैंने तुम्हें जान लिया। और फिर मेरे मन ने तुम्हें यह नाम दिया। तुम इस दुनिया की लिए चाहे जो भी हो, मेरे लिए आरुणि ही रहोगी, मेरी आरुणि!”“फिर तुम लेने किसे गए थे?” अरुंधती के इस