उमैर की नज़रें उन काग़ज़ के टुकड़ों के ढेर पर टिकी हुई थी। अभी अभी ये क्या हुआ था? क्या कोई ऐसा भी कर सकता था? ये जानते हुए भी की इस घर पर उसका हक़ है। एक हक़ उसके इस घर के वारिस होने का.... और दूसरा हक़ उसके मेहर का। उसने इतनी आसानी से दोनों हक़ ठुकरा दिए थे। उमैर को यकीन नहीं हो रहा था। वह ऐसा कैसे कर सकती थी? “इतनी छोटी सी उम्र में इतना ख़ुराफ़ाती दिमाग़ कहां से मिला तुम्हें?” उमैर के कानों में अपनी ही कही गई बात गूँज रही थी। अरीज से