शब्द का तर्पण-कवि मधु के नामडॉ.अवध विहारी पाठक बड़े गौर से सुन रहा था जमानातुम्ही सो गए दास्तां कहते कहते -साविक लखनवी समय इंसानी जिंदगी की बड़ी बुरी शै है । यह रहस्य ही है सदियों से कि वह कब कैसे खुद को प्रमाणित करता है। ऊपर लिखित पंक्तियां कवि नरोत्तमदास पांडेय 'मधु' पर पूरी तौर से लागू होती हैं। समसामयिकता इस कवि के हर शब्द पर गौर कर रही थी, परंतु एक अघटित घटित ने उसकी वाणी को विराम दे दिया। आज हम सब समय को चुनौती दे रहे हैं मधु के कृतित्व पर केंद्रित पुस्तक पर विचार करते