ये उन दिनों की बात थी जब राजमाता जीवित थीं। इतना ही नहीं, बल्कि तब तक महाराज साहब ने भी इस दुनिया से कूच नहीं किया था और राजमाता तब महारानी कहलाती थीं। क्या शान थी, क्या दिन थे।उन्हीं दिनों कोलंबिया के एक क्लब ने एक इंटरनेशनल स्पर्धा का आयोजन किया। उसमें भाग लेने के लिए महारानी ने अपने छोटे बेटे को भेजने की व्यवस्था कर दी। खेल आयोजन निजी तौर पर था इसलिए कहीं से चयन आदि की कोई सरकारी औपचारिकता पूरी करने की ज़रूरत नहीं थी फ़िर भी महारानी ने केवल अपने पति की जानकारी में लाकर बेटे