जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 5

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अपने देश और अपनों की याद में आज भी छुप-छुपकर आँसू बहाने वाली तबस्सुम देश से आने वाली चिट्ठी को पढ़कर ऐसे रोमांचित हो जाती है जैसे सोलह साल की लड़की पहली बार प्रेम- पत्र पढ़कर रोमांचित होती है। जब अपने देश पाकिस्तान से किसी के आने की बात सुनती है तो जैसे पंखों में नई स्फूर्ति और नई जान ही आ जाती है और वो गौरया सी फुदकने लगती है इधर-उधर, गाने लगती है अपने देश के मीठे गीत। पर जबसे इस शहर में आई है इतने बड़े बंगले की मालकिन होने पर भी खुद को अकेली सी महसूस