तेरी चाहत मैं - 35

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मुकेश रॉय लॉन में बैठे थे। "आओ बरखुरदार, अपना ही घर समझो इसे।" "शुक्रिया सर, आप का बड़प्पन है जो मुझे काबिल समझा इसके लिए।" अजय ने बैठेते हुए कहा। “अरे भाई, इंसान अपनी सोच से बड़ा छोटा होता है। और तुम्हारी सोच तो अलग है।” मुकेश रॉय ने अजय को समझाया। अजय उनकी बात पर सिर्फ मुस्कान दी। "हां तो भाई क्या लोगे चाय या कॉफी?" मुकेश रॉय ने अजय से पुछा।"कॉफी सही रहेगी।" अजय ने कहा। "हम्म, ठीक है और क्या लोग साथ में।" मुकेश रॉय ने पुछा। "बस कॉफी सर।" अजय ने मुस्कुराते हुए कहा। “भाई तकलुफ