पटक इतनी ज़ोरदार थी की दर्द से उनकी एक हल्की आह निकल गयी। लेकिन उन्हें पटकने वाला घिनु नहीं था,.....वो प्रज्ञा की रूह थी। उसने उन दोनों को अपने पीछे आने का इशारा किया। सोमनाथ चट्टोपाध्याय तो सामान्य थे, लेकिन अखिलेश बर्मन का व्यवहार थोड़ा अलग था। वे डर रहे थे उसके पीछे जाने से। वो जो दिखती भी है, और नही भी। ऐसा लगता जैसे पानी से बनी है वो, हवा चलती तो हवा के बहाव के साथ वो भी हिलने लगती। रात के घुप्प अंधेरे में भी वो साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी।प्रज्ञा की रूह उन दोनों