64 ------- उस दिन दोनों असहज थे, जो कुछ हुआ था वह इतना अचानक था जैसे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था दोनों को | वो दोनों ही न तो बच्चे थे, न किशोर और न ही उस सब से अनजान लेकिन फिर भी जो कुछ हुआ था वह इतना अचानक था कि वे स्वयं ही चौंक से गए थे | आख़िर उस दिन खुद पर संयम नहीं कर पाए थे |मनुष्य संवेदनाओं का पुतला ही तो है, उससे किन्हीं क्षणों में कुछ भी हो सकता है फिर चाहे हम उसको कुछ भी नाम क्यों न देते रहें