भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 28

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उन दिनों सिनेमा हॉल हर जगह नही होते थे।खान भांकरी छोटा स्टेशन था।कोई दुकान नही थी।रेल्वे स्टाफ को सामान लेने के लिए बांदीकुई या दौसा जाना पड़ता था।सिनेमा हॉल जयपुर में ही था।और हम लोग यानी मैं और पत्नी और तीन साले सुबह सवारी गाड़ी से जयपुर पिक्चर देखने के लिए गए थे।हमने दोपहर को बारह बजे से तीन बजे का शो देखा था।मैंने अपनी पत्नी के साथ पहली पिक्चर देखी।वो थी जंजीर।अभिताभ और जया की जंजीर।आज भी जब टी वी पर यह पिक्चर आती है तो मैं देखने लगता हूँ।इस पिक्चर को देखकर मुझे पत्नी के यौवन की याद