शंकाराचार्य मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे भिखारियों को अपने सहयोगियों के साथ भोजन के पैकेट बाँटते हुए मैं आगे बढ़ रही थी कि तभी भिखारियों की लंबी कतार में आगे बैठी हुई एक भिखारिन कतार से उठकर हम लोगों की विपरीत दिशा में जाने लगी। उसकी यह हरकत हमें चौंकानेवाली लगी, क्योंकि जहाँ दूसरे भिखारी भोजन के लिए टूट पड़ रहे थे, कुछ तो दूसरा पैकेट भी माँग रहे थे, उस भिखारिन का उठकर जाना चौंकानेवाली हरकत ही मुझे लगी। गौरवर्णीय दुबले पतले जिस्म वाली उस भिखारिन के जिस्म से कपड़े के नाम पर फटे हुए चिथड़े झूल रहे थे