कहानी एक स्त्री के आत्म सम्मान की

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एक शादीशुदा स्त्री, जब किसी पुरूष से मिलती है, उसे जाने अनजाने मे अपना दोस्त बनाती है. तो वो जानती है की न तो वो उसकी हो सकती है और न ही वो उसका हो सकता है. वो उसे पा भी नही सकती और खोना भी नही चाहती, फिर भी वह इस रिश्ते को वो अपने मन की चुनी डोर से बांध लेती है.तो क्या वो इस समाज के नियमो को नही मानती?क्या वो अपने सीमा की दहलीज को नही जानती?जी नहीं....!! वो समाज के नियमो को भी मानती है और अपने सीमा की दहलीज को भी जानती है. मगर