न भूख, न प्यास, न नींद, न थकान और न बोरियत! कोई अपनी जगह से हिला तक नहीं। सब एकाग्रचित्त होकर सुन रहे थे बंदर महाराज की कहानी। - मेरे पिता नाव लेकर युवाओं की भांति दुनिया भर में घूमने के लिए निकल तो गए पर उनके पास था क्या? न कोई धन- दौलत और न कोई कीमती सामान। थोड़े ही दिनों में फाकाकशी की नौबत आने लगी। चलो, शरीर ढकने के लिए तो उन्हें इधर- उधर कुछ न कुछ मिल भी जाता पर पेट भरने के लिए तो रोज़ सुबह- शाम कुछ न कुछ चाहिए ही था। दुनिया की