दिवाकरजी ने पीछे देखे बिना ही अहसास किया कि उनकी पत्नी उन्हें बलिहारी होने वाली नजरों से देख रही हे। पिछले काफी लम्बे अर्से से यह उनकी दिनचर्या हो गई थी। पत्नी के लाख मना करने के बावजूद वह समाज सेवा करने के प्रण पर अड़िग थे। पत्नी का तर्क था कि सेवानिवृति के पश्चात् उन्हें घर पर आराम करना चाहिये, साठ साल की उम्र में ‘समाज सेवा’ का जुनून ठीक नहीं है। पर वह नियमपूर्वक साढ़े नौ-दस बजे तक अपने खिजाब लगाये अर्द्धचन्द्राकार रूप से सिर पर सजे बालों पर हैलमेट लगाये खटारा हुए स्कूटर पर निकल पड़ते थे।