इश्क़ ए बिस्मिल - 30

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वह बे मकसद ड्राईव करते करते बोहत दूर निकल गया था। इतनी दूर की अब कच्ची पक्की सड़के ही मिल रही थी .... शहर बोहत पीछे रह गया था और वह बोहत आगे सिर्फ़ सड़कों के मुआम्ले में ही नहीं ज़िंदगी के मुआमले में भी। उसके सामने अब सिर्फ़ हरियाली थी, सब कुछ हरा भरा था, उसे सुकून की ज़रूरत थी, ताज़ी हवा की ज़रूरत थी, सो इनकी तलाश में वह भटकता हुआ यहाँ तक पहुंच गया था। एक नदी के किनारे उसने अपनी गाड़ी रोकी थी। वह गाड़ी से बाहर निकल कर बोन्नेट से टेक लगा कर खड़ा हो