- 24 - सब कुछ वैसा ही था, जैसा प्रतिदिन होता था। आकाश साफ़ था। सूर्य-देवता अपने कर्त्तव्य-पथ पर अग्रसर थे। प्रभुदास नाश्ता आदि करके दुकान पर गया था। गर्मी की तपिश रोज़ जैसी ही थी। फिर भी रास्ते में उसे और दिनों की अपेक्षा अधिक पसीना महसूस हुआ। दुकान पर पहुँचा तो कूलर की हवा से कुछ राहत महसूस हुई। अभी घंटा-एक ही बीता होगा कि उसकी छाती में बहुत ज़ोर का दर्द उठा। उसे लगा कि उसका साँस घुट रहा है। पवन ने पापा की तबियत बिगड़ती देखकर घर फ़ोन करके प्रवीण को भेजने के लिए कहा। साथ