- 9 - प्रभुदास ने जिस सेठ से मकान ख़रीदा था, मकान के पीछे बाज़ार की ओर खुलता उसी सेठ का अहाता था, जो उसने जैन समाज को स्थानक बनाने के लिए दान कर दिया था। इस अहाते में दोमंज़िला स्थानक का निर्माण होने के बाद से चौमासे में जैन साधुओं का ठहरना तथा प्रवचन करना आरम्भ हो गया था। चौमासे के अलावा भी जैन साधु-साध्वियों का आवागमन लगा रहता था। एक रविवार को पार्वती ने प्रवचन सुनकर आने के पश्चात् प्रभुदास को कहा - ‘प्रभु बेटे, स्थानक में एक पहुँचे हुए जैन मुनि आए हुए हैं। वे ‘चौमासा’ यहीं