अनूठी पहल - 2

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- 2 - गाँव का घर बड़ा तो था, किन्तु आधा कच्चा, आधा पक्का था। लेकिन यहाँ का घर पूर्णतया पक्का था। ड्योढ़ी, रसोई के अलावा तीन कमरे थे। बीच में खुला आँगन। गाँव में आँगन कमरों के सामने था। चाहे दो-ढाई फुट की कच्ची चारदीवारी थी, फिर भी गर्मी के दिनों में रात के समय किसी कुत्ते-बिल्ली अथवा अराजक तत्त्वों का डर बराबर बना रहता था, विशेषकर प्रभुदास के पिता के कत्ल के बाद से। लेकिन दौलतपुर आकर इस तरह की दुश्चिंताओं से निजात मिल गई। चाहे आँगन में सोवो, चाहे खुली छत पर। किसी तरह के ख़तरे की