सेठ जमनादास को अपनी तरफ बढ़ते देखकर अमर अपने होठों पर उँगली रखकर बिरजू को खामोश रहने का इशारा करते हुए एक ही पल में दालान में पहुँच गया। दरअसल वह अभी जमनादास की नजरों के सामने नहीं पड़ना चाहता था।दालान में दरवाजे के पीछे से झाँककर वह बाहर खड़े बिरजू को देख रहा था जो अभी भी वहीं खड़ा था। उसने देखा अब जमनादास बिरजू के एक दम करीब आ गए थे। उनकी चाल से निराशा झलक रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे बहुत परेशान हों। नजदीक आकर उन्होंने बिरजू से प्यार से पूछा, "बेटा, तुम तो इसी