इश्क़ ए बिस्मिल - 27

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अरीज किसी गहरी सोच की खाई में डूबी हुई बेड पर लेती हुई थी। हाँ एक सोच ज़ेहन में ज़रूर थी...मगर बेवजूद सी, बेनाम सी। बदन दर्द से अलग टूट रहा था, भूक ने पेट में अलग ऐठन लगाई हुई थी, तो ज़हन भी सुना पड़ा हुआ महसूस हो रहा था। उसकी आँखें सीलिंग पर टिकी जाने क्या निहार रही थी जभी उमैर कमरे में दाखिल हुआ। वह हड़बड़ा कर उठ बैठी थी, जैसे उसने उमैर के बेड पर लेट कर कोई बड़ा गुनाह कर दिया था। अरीज की इस हड़बड़ाहट को देख कर उमैर शर्मिंदा हो गया जैसे उसने