शत्रुघ्न - अध्याय 1

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एक दिन देवश्रवा यमुना के पार समीप के जंगलों में आखेट(शिकार) के लिए जाता है। आखेट में मग्न देवश्रवा को सहसा ही अनुमान होता है कि वह जंगल में बहुत अंदर तक आ गया है और दिन भी अपनी समाप्ति की ओर बढ़ चला है। अतः इस जंगल में अधिक रुकना जीवन के विरुद्ध ही होगा। तथैव अपने कदमों की लंबाई बढ़ाते हुए वह जंगल से बाहर निकलने लगता है। किंतु कुछ समय चलने के पश्चात् भी दूर-दूर तक जंगल की सीमा समाप्त होते ही नहीं पड़ रही थी। देवश्रवा को अनुमान हो जाता है कि वह इस घने जंगल