PS -1 - फ़िल्म समीक्षा

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ये उसी परंपरा की फ़िल्म हैं। जिसमें डायरेक्टर को रातों को नींद नहीं आती कि मैंने फ़िल्म उद्योग में चालीस साल बिता दिए और अभी तक भारत के किसी समय के इतिहास पर 500 करोड़ का कारनामा नहीं बनाया। तो बस ये वहीं फ़िल्म हैं। अगर किसी को ये फ़िल्म देखनी हैं। तो पहले ही किसी साइकैट्रिस्ट का पता ढूंडले क्योकि अगर ढूंढ़ने से पहले ये देखली तो शायद पागल खाने में भी जगह ना मिले। सच में भयानक थी। अभी जून में पृथ्वी राज चौहान फ़िल्म को देखकर लगा था। इससे बुरा क्या होगा, पर ये बकवास 500 करोड़