नर्मदा और सागर वापस अपने गाँव की धरती पर क़दम रख कर; यदि पुरानी यादों के कारण दुःख के आँसू बहा रहे थे तो अपनी दोनों बेटियों और विवेक की सफलता पर ख़ुश भी हो रहे थे। नर्मदा ने सागर से कहा, “देर से ही सही आख़िर यमुना के बलिदान को इंसाफ़ तो मिल ही गया।” “हाँ नर्मदा लेकिन उसे इंसाफ़ दिलाने में विवेक का बहुत बड़ा सहयोग है। हमारी गंगा अब सच में अपना आगे का जीवन ख़ुशी के साथ जिएगी।” धीरे-धीरे रास्ता तय होता गया और वे सब हवेली पहुँच गए। पूरी हवेली जगमगा रही थी, मानो मुस्कुरा