अग्निजा - 47

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प्रकरण-47 रणछोड़ दास को लगा कि यदि भिखाभा कह रहे हैं तो काम होना ही है। लेकिन उसे मालूम ही नहीं था कि केतकी इतनी जल्दी इस घर से विदा होने वाली नहीं थी, और शादी करके तो बिलकुल भी नहीं। इसके अलावा भिखाभा के लिए राजनीतिक दौड़भाग करते हुए उसे खुद को भी केतकी के लिए वर तलाशने का समय नहीं मिल रहा था और न उसके पास इस समय इतना समय था कि इस बात का बुरा मानते बैठे। केतकी इन सब बातों से अनजान और लापरवाह होकर अपनी शाला के काम में गले तक डूब चुकी थी।