अग्निजा - 38

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प्रकरण 38 यशोदा बर्तन मांज रही थी और उसके कानों पर रणछोड़ दास के ये वाक्य अभी भी गूंज रहे थे, ‘बस झालं तिचं शिक्षण.. मी किती दिवस तिचा खर्च करू?.. मी म्हणून एवढं तरी केलं... नाहीतर कोणी केलं नसतं.’ क्या हुआ भगवान जाने, पर यशोदा एकदम उठ कर खड़ी हुई. रविवार की दोपहर थी। शांति बहन और रणछोड़ दास खाना खाकर सौंफ चबा रहे थे। यशोदा उनके सामने जाकर खड़ी हो गई। दोनों हाथ जोड़ कर बोली, “मैंने आज तक आपसे कुछ नहीं मांगा है, कभी कोई शिकायत नहीं की...आज कृपा करके मेरी एक बात मान लें...” सुपारी कतरते