आखिरकार, वो दिन भी आ गया, जिसका हम सब बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। रुस्तमने जंग की तैयारियों में रात दिन एक कर दिए थे। जंग की सारी भागदौड़ की डोर उसीके हाथमे थी। सभी लोग उसकी बात भी अच्छे से सुन रहे थे। उसका कहा हर लफ्ज़ सबलोग मानने को तैयार खड़े थे। उसके साथ मिलकर लड़ने के सपने देखते थे। उस जंग केलिए रुस्तमके साथ भले ही छोटी फौज जा रही थी लेकिन वो तैयार थे। हर तरह से वो काबिल थे। तीन हजार से भी कम सैनिक चर्चासभा केलिए सुबह के साढे चार बजे जैसलमेर की