अब गीता जिन्दगी के एक और रंग से रूबरू हो चुकी थी,लेकिन कुछ भी हो पेट भरने के लिए तो रोटी चाहिए और रोटी खरीदने के लिए पैसें और पैसों के लिए काम करना पड़ता है इसलिए गीता को मजबूर होकर फिर से एक घर का काम पकड़ना ही पड़ा,इस बार उसे एक रईस खातून के यहाँ काम मिला,जिनका नाम मदीहा था,वें बेहिसाब दौलत की मालकिन थी,उन्हें एक ऐसी कामवाली चाहिए थी जो उनके घर खाना पका सकें,क्योंकि अब वें बहुत बूढ़ी और लाचार हो चुकीं थीं,उनकी एक बेटी भी थी लेकिन वो अपनी पढ़ाई के लिए विदेश गई और