और फिर अपारशक्ति से दो तीन मुलाकातों के बाद मैं उनकी संगमरमर की मूर्तियों की माँडल बनने को तैयार हो गई,मैनें इस काम के लिए मुँहमाँगें रूपये लिए और उनका कान्ट्रेक्ट साइन कर लिया,अब मुझे काँलेज में काम करने की इजाजत नहीं थी और सच कहूँ तो मैं भी उस काम से ऊब गई थी और रूपये भी कम मिलते थे,जब इन्सान की तरक्की के रास्ते खुल जाते हैं तो वो अपनी पुरानी जिन्दगी भूल जाना चाहता है और मैं भी वही चाहती थी जो मैनें किया...... अब मुझे मूर्तिकारों के समक्ष खड़े होकर अपने पोज देने होते और वें