कामवाली बाई - भाग(१६)

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गीता को अब अपने जीवन से रूचि नहीं रह गई थी,लगभग लगभग दुनिया के सभी इन्सान अक्सर इसी दौर से गुजरते हैं,जब उनके जीवन में नीरसता का भाव आ जाता है,वें खुद से खुद को खुश नहीं रखना चाहते और गीता के साथ भी यही हो रहा था,शायद गीता ने इतनी कम उम्र में इन्सानों का वो घिनौना रूप देख लिया था कि उसे अब किसी पर भी भरोसा ना रह गया था.... लेकिन ये जीवन ही भरोसे और उम्मीदों पर टिका है तो इसे हम नकार नहीं सकते,चाहे मन से स्वीकारें या गैर मन से लेकिन इसे स्वीकारना ही