ऐश की आंखों में आंसू आ गए। वह इधर- उधर उड़ती- हांफती न जाने कितनी देर से बदहवास सी घूम रही थी पर उसे उसके साथी लोग कहीं नहीं दिख रहे थे। ऐसा कैसे हो सकता है कि उसे इतना दिशाभ्रम हो जाए। फिर भी उसने सुबह से हर तरफ उड़ - उड़ कर देख लिया। चप्पे- चप्पे की ख़ाक छान ली। पहली बात तो यही थी कि परिंदों का वह समूह दो- एक दिन वहां रुकने वाला ही था। इतनी जल्दी सब कहां चले गए, कैसे चले गए। फिर अगर किसी वजह से वो विश्राम स्थल छोड़ना भी पड़ा