निरंजन चौधरी 50 के लपेटे मे आये हुये इन्सान थे,और कोई 22 बरस हो गये थे उन्हें अपनी स्टील की फैक्टरी मे नौकरी करते हुये।जीवन एकरसता सा चला जा रहा था,वही आना,जाना,सुबह शाम की फिक्स बस,वही लंच टाईम,कोई परिवर्तन नहीं।उन्होने सर उठा कर घडी की ओर देेेखा,साढेे बारह बज चुुुके थे,लंचटाईम मे आधा घन्टा और बचा था,वो अपना डेस्क सहेजने लगे।एक नियम सा बन चुका था,सारे स्टाफों का लंच आवर मे अपने अपने टिफिनों के साथ कैन्टीन या फिर पिछवाड़े के लान मे इकठ्ठा होकर खाने का,जहाँ वो सब अपना खाना भी आपस मे शेयर करते,और गप्पें लडाते।किसी के टिफिन