आठ इस सब से बढ़ कर साहित्यिक परिदृश्य को मैला किया उन तथाकथित साहित्यकारों ने जो साहित्य लेखन को समाज में अपने व्यक्तित्व को उभार लाने का जरिया समझने लगे। वैसे इसमें कुछ गलत तो नहीं है। आप जन सरोकारों पर लिखेंगे तो लोग ध्यान देंगे ही। और अगर आप पर ध्यान दिया जाएगा तो आपका व्यक्तित्व सार्वजनिक होगा ही। लेकिन इस सामान्य सी प्रक्रिया में भी एक मैला तत्व ये आया कि अधिकांश लेखक राजनैतिक दलों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ कर खुलेआम किसी राजनैतिक दल को लाभ पहुंचाने वाली बातों का समावेश साहित्य में करते हुए दिखाई देने