अपने साथ मेरा सफ़र - 6

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छः अपनी इसी सोच कर के चलते मेरा ध्यान पौराणिक, ऐतिहासिक तथा प्राचीन साहित्य से हटता चला गया। यहां तक कि मैंने वेद,पुराण,रामायण, महाभारत, गीता या पौराणिक पात्रों से संबंधित व्याख्याओं तथा विमर्शों को पढ़ना ही छोड़ दिया। मुझे ये कहने में आज कोई संकोच भी नहीं है कि इस साहित्य की बेड़ियों से मुक्ति पाए बिना साहित्य को आधुनिक या समकालीन जीवन से जोड़ा ही नहीं जा सकता। हम "साहित्य जीवन का दर्पण है" जैसे जुमलों को दोहराते रहते हैं किंतु साहित्य को अपनी सुविधा और प्रमाद के चलते जीवन से बहुत दूर घसीट ले गए हैं। हम इस