चरित्रहीन........(भाग-1)मैं वसुधा पाठक दिल्ली में ही पैदा हुई, यही पढी लिखी, नौकरी और फिर शादी भी यहीं....। दिल्ली के चप्पे चप्पे से वाकिफ हूँ मैं....पर मैं खुद को खुद से मिलाना ही भूल गयी थी। जब मिलाना चाहा तो चरित्रहीन का तमगा मिल गया वो भी अपनों से! दुख इस बात का है कि मेरे बच्चे भी मुझे समझ नहीं पाए!! जो मुझे अंदर तक दुखी कर गया.. ............ मैं तो फेल हो ही गयी साथ ही मेरी परवरिश भी। ये तो नहीं कह सकती कि सारी गलती सिर्फ मेरे बच्चों की है, कुछ हाथ तो मेरा भी रहा होगा