अनेक बार यह कहा जाता है कि- 'न मूलं लिख्यते किञ्चित।' ऐसे लोगों से जब प्रश्न पूछिये कि आखिर मूल कहते किसे हैं? तो उनके पास कोई उत्तर नहीं होता। वास्तव में मनुष्य और जीव का मष्तिष्क और उस मष्तिष्क के वाह्य या स्थूल जगत के साहचर्य से उपजा बुद्धि और विवेक ही वास्तविक मूल है। मष्तिष्क की निर्माण प्रक्रिया और निर्माण प्रक्रिया का कर्ता और करण ही मूल है। बाकी जिसको- जिसको आप मूल समझते हैं, वह मूल नहीं! मूल का फलन या प्रतिफल या परिणाम है अर्थात वह मूल की कृपा एवं क्रिया से उपजा उत्पाद है। वह