यमुना ने तो कुएँ में यह सोचकर छलांग लगाई थी कि उसके इस बलिदान से एक ऐसी क्रांति आएगी जो सवर्ण और छोटी जाति सब को एक कर देगी। लोगों के दिल बदल जाएंगे; लेकिन उसका यह बलिदान कोई क्रांति ना ला सका। अभी भी महिलाओं को सर पर मटकी लाते देखकर उसकी आत्मा भी रोती होगी। सागर और नर्मदा अब तक थक चुके थे। उन्हें इस गाँव से नफ़रत हो चुकी थी। गंगा-अमृत को देखते ही उन्हें यमुना दौड़ती हुई उस कुएँ में छलांग लगाती दिख जाती। उसकी पायल की मधुर ध्वनि उनके कानों में जाती तो आँखों से