यमुना को कुऍं में छलांग लगाए अभी कुछ ही पल तो हुए थे, उन्हें उम्मीद थी शायद उनकी बेटी की साँसें चल रही हों लेकिन जैसा वह चाहते थे वैसा हुआ नहीं। यमुना एक लड़के की गोद में थी ज़रूर लेकिन ज़िंदा नहीं लाश के रूप में। अब भी उसकी पैजन के घुंघरू मद्धम-मद्धम बज रहे थे। सागर और नर्मदा की चीख एक साथ निकल गई, “यमुना मेरी बच्ची…” लेकिन अपने माता-पिता की आवाज़ सुनने के लिए यमुना अब कहाँ थी। उसका पार्थिव शरीर उसके माता-पिता को सौंप दिया गया। वह लोग और उनकी बिरादरी के लोग मातम मनाते रोते