वीरपुर गाँव ऐसी धरती पर बसा था, जिसे कई बार इंद्र देवता शायद भूल ही जाते थे कि वहाँ भी धरती प्यासी होगी। पानी के लिए तड़पती धरती में दरारें पड़ गई होंगी और वह दरारें चीख-चीख कर चिल्ला रही होंगी कि हे इन्द्र देवता हम पर भी रहम करना। यहाँ भी इंसान बसते हैं, जानवर, पशु पक्षी, रहते हैं। गाँव के लोग टकटकी लगाए बादलों की ओर देखते रहते। पानी की एक बूंद भी उन्हें दिखाई नहीं देती। इसी तरह पूरी बारिश की ऋतु निकल जाती। कुएँ, तालाब सूख जाते थे। थोड़ा बहुत पानी जो होता वह पूरे गाँव