" धुंध में आदमी "व्यथाओं की धुंध काएक सिरा पकड़ेसंघर्षों से जूझतीखड़ी है जिंदगीदिशाहीन राहों परधुंध के उस पारस्वयं का स्वरूप खोजताकैसा और क्या होगा......?एक अनुत्तरित प्रश्न साखड़ा है आदमीहर रोज की भागम भागगहरी मुश्किलों कीउदासी में भीडाले रहता हैअपने दोनों हाथउम्मीद के झोलों में ।मुश्किलें मुंडेर से झांकतीआंगन में अथक परिश्रम की गांठेंरोज खोलता बांधतानहीं पता अनवरत बहतेबेखबर जीवन कोधुंध का घनत्वकब गहरा हो गयाऔर कब..........?धीमा होने लगास्वतः रक्त प्रवाहउसकी धमनियों में ।** बेटी ---------------------------हो हर जाड़े की खिली धूपतुम अंजोरी अंतर्मन कीतपी दोपहर की हो छायातुम अक्षि मेरे जीवन की ।तुम निर्मल मन मेरी कायाहो कोयल मेरे बागों