अथ गूँगे गॉंव की कथा - 18

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उपन्यास-   रामगोपाल भावुक                             अथ गूँगे गॉंव की कथा 18                अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति   18         कुन्दन समझ गया माँ का पारा गरम है। उन्हें शान्त करते हुये बोला-‘ माँ छोड़ इन बातों को, पिताजी के दायित्व का एक यही काम बचा है। वह भी अब तो निपट ही जायेगा। फिर हम किसलिये हैं। बहन के प्रति हमारा भी कोई दायित्व है कि नहीं!’         वे झट से बात काट कर बोलीं-‘ अभी तक सारे काम पुरखों की जायदाद बेच-बेच कर निपटाये हैं। मेरे बाप ने भी इतना दिया था कि सँभल नहीं