अथगूँगे गॉंव की कथा - 4

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उपन्यास-   रामगोपाल भावुक                                अथ गूँगे गॉंव की कथा 4                अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति       भीड़ में से किसी ने उनकी बात का विरोध किया-‘अरे! ऐसी अटकी हू का है। भेंऊँ भलिनकों को पूछतो। गुण्डन की चलती सब जगह हो गई है। फिर जैसे तुम सोच रहे हो वैसे वेऊ सोच रहे हैं कै नहीं?’      किसुना गोली बोला-‘ जे बातिन में टेम खराब मति करो। अरे !जब वे इतै नहीं ढूँके ,अपुन बितै काये कों चलतओ?’झगड़े के डर से अधिकांश लोग गैल काटकर चलने के मूड़ में आ गये। यह