मुहब्बत क्या ऐसी होती? जो मैं देख रही हूँ।या ऐसी, जो मै महसूस कर रही हूँ?ऐसी मुहब्बत जो मेरे दिमाग़ को शील किये हुआ है। मेरी सोचने समझने कि ताक़त मुझसे छीन चुका है। मुझे महसूस होता है कि मै हर रोज़ बरबादी कि तरफ़ बढ़ रही हूँ। मेरा दिल कुछ चाहता है, दिमाग़ कुछ सोचता है और ज़ुबान कुछ कहती।ख़ैर जो भी है। ये मैं हूँ, ये मेरी मुहब्बत और उस मुहब्बत में ये मेरा हाल।"कहाँ खोई हुई हो रिदा? देखो तो उन दोनो को कितने खु़श नज़र आ रहे है।" किरन के कहने पे मैने अपनी सोचों से